पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) ने उन ख़बरों को ख़ारिज किया है कि वर्ष 2011 में होने वाला क्रिकेट विश्व कप दक्षिण एशियाई देशों के हाथ से निकल सकता है.

विश्व कप के आयोजन से जुड़े और पीसीबी के ‘चीफ़ ऑपरेटिंग ऑफ़िसर’ सलीम अल्ताफ़ ने समाचार एजेंसियों को बताया कि विश्व कप से संबंधित सारी तैयारियाँ पूर्ववत चल रही हैं.

उल्लेखनीय है कि मुंबई में हुए हमलों और पाकिस्तान में सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनज़र भारतीय उप महाद्वीप में होने वाले विश्व कप को लेकर चिंता जताई जा रही है.

ऑस्ट्रेलियाई मीडिया में इस तरह की ख़बर आई थी कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट कांउसिल इस बात पर विचार कर रही है कि विश्व कप का आयोजन भारतीय उप महाद्वीप से बाहर कहीं और हो.

विचार-विमर्श

इस मामले पर अगले सप्ताह केपटाउन में विश्व कप से जुडे मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की बैठक में विचार विमर्श होने की संभावना है.

वर्ष 2011 में होने वाले विश्व कप का आयोजन भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका संयुक्त रूप से करेंगे.

अल्ताफ़ ने बताया, “आईसीसी ने विश्व कप के लिए बनी संयुक्त समिति को तय सीमा के तहत कुछ जवाबदेही सौंपी थी जिस पर हम समय से काम कर रहे हैं.”

केपटाउन में मुख्य अधिकारियों की होने वाली इस बैठक में सलीम अल्ताफ़ भी हिस्सा लेंगे.

मुंबई में हुए हमलों का संबंध पाकिस्तान से होने के भारत के आरोपों की वजह से पाकिस्तान में लोग काफ़ी चिंतित और आशंकित हैं.

आरोप है कि आतंकवादी भारत के लिए कराची से ही रवाना हुए थे.

कराची में एक एयरलाइन के कर्मचारी ने कहा, “वे हमेशा हम पर ही क्यों दोष मढ़ते हैं? जब भी भारत में कुछ होता है, वे कहते हैं कि इसमें पाकिस्तान का हाथ है लेकिन उनको इसका कोई सबूत नहीं मिलता.”

एक बुटीक के मालिक उनसे सहमत हैं, “हर कोई हमारे पीछे पड़ा है.” उनके ग्राहक भी कहते हैं कि भारत बदला लेने के लिए ‘अपने एजेंटों की मदद से’ कराची में हमले कराएगा.

पाकिस्तान के लोग इन आरोपों से पूरी तरह इनकार तो करते हैं लेकिन ये सच अपनी जगह क़ायम है कि वहाँ स्थित इस्लामी चरमपंथी गुट भारत के ख़िलाफ़ कश्मीर में लड़ाई लड़ते रहे हैं.

संबंध से इंकार

इन्हीं में से एक प्रमुख चरमपंथी गुट लश्करे-तैबा पर भारत की संसद पर 2001 में हुए हमले में शामिल होने का आरोप है, इस हमले ने दोनों देशों को युद्ध के कगार पर ला दिया था.

पाकिस्तान विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को संबंधों में दरार आने की आशंका है

पाकिस्तानियों का कहना है कि भारत अपने आरोपों में वास्तविकता का ध्यान नहीं रखता है.

रक्षा विशेषज्ञ हसन अस्करी रिज़वी ने एक स्थानीय दैनिक समाचार पत्र में लिखा, “यह बहुत दिलचस्प है कि भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ इतनी बड़ी साज़िश का पता लगाने में तो नाकाम हो गईं और सारा समय पाकिस्तानी गुटों पर आरोप लगाने में बर्बाद कर दिया.”

उन्होंने कहा है, “अगर वे जान गए थे कि इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है तो वे इसे क्यों नहीं रोक पाए? भारत को घर में ही पल रहे कट्टरवाद के सच को समझना चाहिए, अपनी समस्याओं के लिए पाकिस्तान पर आरोप लगाने की निरर्थकता को समझना चाहिए.”

वास्तविकता से दूर

रिज़वी ने पाकिस्तान के लोगों की लगभग आम राय को व्यक्त किया है, भारत पिछले कुछ सालों में अपने ही देश में पल रहे कुछ इस्लामिक गुटों से पैदा होने वाली समस्याओं को नकारता आया है जिसकी जड़ें मुसलमानों के साथ भेदभाव और सांप्रदायिक हिंसा में है.

फरवरी 2007 में नई दिल्ली और लाहौर के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में हुई बमबारी का आरोप सबसे पहले पाकिस्तान पर लगाया गया था, लेकिन बाद में इसका संबंध एक हिंदू उग्रवादी संगठन से बताया जाने लगा.

पाकिस्तान की सरकार और सेना दोनों ने ही भारत को आगाह किया है कि वह जल्दबाज़ी में किसी निर्णय पर पहुँचने से बचे.

तार पाकिस्तान से जुड़े हैं

राजनीतिक नेताओं ने मुंबई हमलों की निंदा करते हुए इसकी जाँच में बिना शर्त सहायता देने की पेशकश की है और इसमें किसी पाकिस्तानी सूत्र के होने पर उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का वायदा किया है.

पिछले साल जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के नेतृत्व वाली सरकार के जाने के बाद वे भारत के साथ किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते हैं.

विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा, “मैं चिंतित हूँ क्योंकि मैं इससे अगली कार्रवाई समझ सकता हूँ. हमें सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए क्योंकि स्थिति काफ़ी गंभीर है और भारत के लोग इसे अपना 9/11 की तरह बता रहे हैं.”

संबंधों में दरार

उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि संबंधों में आई यह दरार जल्द ही भर जाएगी.

शनिवार को एक वरिष्ठ सेना अधिकारी ने कहा कि अगर भारत अपनी सेना बढ़ाएगा तो वे भी उसी तरह से जवाब देंगे.

भारतीय नेताओं ने पाकिस्तान पर दबाव डाला कि वह ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख को भारत भेजे जिसके लिए पाकिस्तान पहले तैयार हो गया लेकिन बाद में एक बैठक करके निर्णय लिया गया कि आईएसआई के प्रमुख नहीं बल्कि एक प्रतिनिधि को भेजा जाएगा.

राष्ट्रपति आसिफ़ ज़रदारी ने इसे संवाद की कमी बताया, तो दूसरों ने इसकी घोषणा करने से पहले सेना से सलाह न लेने का परिणाम बताया.

ज़रदारी ने वादा तो कर दिया था लेकिन पाकिस्तान की सेना इसके लिए तैयार नहीं हुई और निर्णय बदलना पड़ा.

यह देखना अभी बाकी है कि अमरीका और भारत के दबाव से दोनों देशों के संबंधों में आई यह खटास और बढ़ती है या नहीं.

पाकिस्तान की प्रमुख पार्टियों की शांति की अपील के बावजूद कराची में हिंसा जारी है.

सरकारी प्रवक्ता ने कहा है कि अज्ञात बंदूकधारियों के हमलों में शनिवार से अब तक कम से कम 24 लोग मारे गए हैं.

लेकिन अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि मरने वालों की संख्या 35 से ज़्यादा हो सकती है.

यह हिंसा देश की अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) और मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के बीच महीनों से चल रहे तनाव का नतीजा है.

एएनपी ज़्यादातर उत्तर-पश्चिम और अफ़ग़ानिस्तान के पश्तूनों का प्रतिनिधित्व करती है जबकि एमक्यूएम उर्दूभाषी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है.

आगज़नी

कार और मोटरसाइकिलों पर चलने वाले बंदूकधारी अंधाधुंध फ़ायरिंग करके पैदल चलने वालों और कार चालकों को निशाना बना रहे हैं.

कुछ इलाकों में आगजनी भी की जा रही है विरोधी समुदाय के घरों और व्यापार को निशाना बनाया जा रहा है.

कराची की सड़कों पर पुलिस के अलावा कोई और नज़र नहीं आ रहा है.

क़रीब डेढ़ करोड़ की जनसंख्या वाले कराची में ज़्यादातर उर्दू भाषी लोग रहते हैं जो 1947 में भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे.

कराची में सूबा सरहद प्रांत से आने वाले पश्तूनों की तादाद भी काफ़ी है.

सूबा सरहद में चल रहे सैनिक ऑपरेशन की वजह से हज़ारों की संख्या में कराची से लगे इलाकों में पश्तूनों को हाल ही में बसाया गया है.

एमक्यूएम के नेता सार्वजनिक रूप से इस समुदाय में तालेबान की घुसपैठ होने का डर फैला रहे हैं.

अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के तालेबान में भी ज़्यादातर पश्तून हैं.

एएनपी ने इसे कराची के पश्तूनों के ख़िलाफ़ साज़िश बताते हुए एमक्यूएम के बयान की आलोचना की है.

तनाव बढ़ा

पुलिस का कहना है कि पिछले दो सप्ताहों के दौरान एमक्यूएम के प्रभुत्व वाले इलाकों में उनके ही माने जाने वाले कार्यकर्ताओं ने पश्तूनों की चाय और लकड़ी आदि की दुकानें ज़बरदस्ती बंद करवा दी हैं.

उन्होंने कहा कि शहर के विभिन्न इलाकों में पश्तूनों के वाहनों पर हमले किए जा रहे हैं जिसने सांप्रदायिक तनाव को और बढ़ाया है.

पुलिस के अनुसार, यह हिंसा कराची के उत्तर में स्थित एमक्यूएम के प्रभुत्व वाले इलाक़े के पास एक पश्तून चायवाले को मार दिये जाने के बाद शनिवार से शुरू हुई.

पश्तूनों ने कराची से आने और जाने के अपने नियंत्रण वाले अधिकतर रास्ते बंद कर दिए हैं जिनमें से ज़्यादातर एएनपी के समर्थक हैं.

पाकिस्तान की तीन मुख्य पार्टियाँ- एमक्यूएम, एएनपी और राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी की पीपीपी- देश में तनाव को कम करने के लिए मिल गई हैं.

लेकिन उनकी अपील पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

मुंबई में हुए चरमपंथी हमलों के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव ख़ासा बढ़ गया है.

पाकिस्तान से माँग की गई है कि वह उन भगोड़ों और चरमपंथियों को भारत को हवाले करे जो वहाँ रह रहे हैं.

पिछले हफ़्ते मुंबई में कई जगहों पर किए गए चरमपंथी हमलों में 189 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी और अनेक घायल हो गए थे.

भारत के विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने समाचार एजेंसियों को बताया कि सोमवार की रात जब दिल्ली में पाकिस्तान के उच्चायुक्त के साथ बैठक में भारत ने अपनी शिकायत दर्ज कराई थी तब इन संदिग्ध चरमपंथियों की सूची भी उन्हें सौंपी गई थी.

‘गिरफ़्तार करें, भारत को सौंपें’

उन्होंने बताया, “भारत ने कहा है कि पाकिस्तान में रह रहे उन सभी लोगों को गिरफ़्तार किया जाए और भारत के हवाले किया जाए जिनकी क़ानून के तहत भारत में तलाश है. ये सूची बदलती रहती है लेकिन ऐसे क़रीब 20 लोगों की सूची हमने पाकिस्तान को दी है.”

भारत ने कहा है कि पाकिस्तान में रह रहे उन सभी लोगों को गिरफ़्तार किया जाए और भारत के हवाले किया जाए जिनकी क़ानून के तहत भारत में तलाश है. ऐसे क़रीब 20 लोगों की सूची हमने पाकिस्तान को दी है

प्रणव मुखर्जी

इस सूची में वर्ष 1993 में मुंबई में हुए चरमपंथी हमलों के कथित ‘मास्टरमांइड’ दाउद इब्राहिम और कश्मीर में सक्रिय रहे मौलाना मसूद अज़हर शामिल हैं.

भारत ने इन लोगों को ‘मोस्ट वांटेड’ की सूची में रखा है.

ग़ौरतलब है कि भारत का दावा है कि माफ़िया सरगना दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में है जबकि पाकिस्तान इसे ग़लत बताता रहा है.

पाकिस्तान ने कहा है कि वह सूची मिलने पर उसका अध्ययन करेगा और फिर प्रतिक्रिया देगा. उधर पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा है कि ये नाज़ुक वक़्त है और “आतंकवाद भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के लिए चुनौती है”.

पाकिस्तान ने कहा है कि उसने भारत के सामने संयुक्त जाँच की पेशकश रखी है. लेकिन पाकिस्तान ने ये भी कहा है कि भारत को पुख़्ता सबूत देने चाहिए कि इन चरमपंथी हमलों में पाकिस्तान का हाथ था.

एक अमरीकी संगठन के अनुसार अमरीका का असरदार राजनीतिक और सैनिक प्रभाव रखने वाले देश के रूप में अमरीका की छवि आने वाले सालों में कमज़ोर होगी.

अमरीकी नेशनल इंटेलिजेंस काउंसिल का कहना है कि चीन, भारत और रूस से अमरीका को कड़ी चुनौती मिलेगी.

रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले समय में लोकतंत्र का पश्चिमी मॉडल उतना आकर्षक नहीं रहेगा.

यही नहीं पूरी दुनिया में मुख्य मुद्रा के रुप में स्वीकार्य अमरीकी डॉलर अपनी चमक खो बैठेगा.

हालाँकि रिपोर्ट ये भी कहती है कि ये सब अभी से तय नहीं माना जा सकता बल्कि यह इस पर निर्भर करेगा कि दुनिया भर के नेता किस तरह के क़दम उठाते हैं.

चीन का उत्थान

चीन के बारे में कहा गया है कि यह वर्ष 2025 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और बड़ी सैनिक ताक़त के रुप में उभरेगा.

भारत के बारे में कहा गया है कि यह देश अपने आपको ‘उभरते हुए चीन और अमरीका के बीच राजनैतिक-सांस्कृतिक पुल’ के रूप में स्थापित करने की कोशिश करेगा.

विश्लेषकों के मुताबिक भारत में तेज़ी से उभरते मध्य वर्ग, युवाओं की बड़ी तादाद, खेती पर निर्भरता में कमी, घरेलू बचत दर और निवेश दर में वृद्धि से आर्थिक विकास दर को और गति मिलेगी.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि दुनिया और बहुध्रुवीय हो जाएगी. मौजूदा राजनीतिक और जातीय मौजूदा विवाद एक नई शक्ल में सामने होंगे, बढ़ती जनसंख्या और बढ़ती आर्थिक विकास दर के कारण प्रकृतिक संसाधनों पर बोझ ज्यादा होगा.

यूरोपीय संघ की हालत ख़स्ता

यूरोपीय संघ की हालत और ख़राब हो सकती है, एक लड़खड़ाती हुई अर्थव्यवस्था के साथ वो न तो अपनी कूटनीति को असरदार बना पाएगा, न ही उसकी सैन्य क्षमता बरक़रार रह पाएगी.

पाकिस्तान का भविष्य पूरी तरह अनिश्चित बताया गया है, जिससे अफगानिस्तान सबसे ज्यादा प्रभावित होगा, रिपोर्ट में पाकिस्तान के सरहदी सूबे और कबाइली इलाकों में प्रशासन ढीला ही रहेगा जिससे सीमा पार तक अस्थिरता का ये दौर यूं ही जारी रहेगा.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अगर इन इलाकों में पाकिस्तान अपने प्रशासन को संभाल नहीं पाया तो पठानों की ताकत उभरने का पूरे आसार हैं.

जहाँ तक अफगानिस्तान की बात है, रिपोर्ट में कहा गया है कि वहाँ भी सांप्रदायिक और क़बायली विवाद बढेंगे और वहां पश्चिमी देशों की विकास परियोजनाओं के संसाधनों पर कब्ज़े की लड़ाई में तबदील होने के आसार हैं.

ईरान, इंडोनेशिया औऱ तुर्की को इस रिपोर्ट में भविष्य की उभरती हुई ताकतों के रूप में देखा गया है.

इस रिपोर्ट में एक बात बड़ी साफ़ कही गई है कि अमरीका के अपना प्रभुत्व खो देने का कारण आर्थिक संकट औऱ चीन का बड़ी आर्थिक ताक़त के रूप में उभरना तो रहेगा ही लेकिन अमरीका के अपने फैसले और उसकी नीतियां, उसके लिए ज्यादा ज़िम्मेदार रहेंगी.

इराक पर हमले ने एक तो अमरीका को उसकी सैन्य ताकत की सीमाएं दिखा दीं और दूसरे ये भी समझा दिया कि एक अलग समाज में वो अपने तथाकथित पश्चिमी लोकतंत्र के आदर्श को नहीं बेच सकेगा.

pak
पाकिस्तान में पुलिस का कहना है कि पेशावर शहर में कुछ बंदूकधारियों ने ईरान के एक राजनयिक का अपहरण कर लिया है और उसके सुरक्षाकर्मी की हत्या कर दी है.

ईरानी राजनयिक हशमत अतहर ज़ादे के बारे में कहा गया है कि वो पाकिस्तान में स्थित ईरानी दूतावास में वाणिज्यिक राजदूत हैं.

गुरुवार की सुबह पेशावर शहर के हयाताबाद में उनका अपहरण किया गया.

ये घटना पेशावर में एक अमरीकी सहायताकर्मी और उसके चालक की हत्या के दो दिन बाद घटी है.

हिंसा में बढ़ोत्तरी

ग़ौरतलब है कि हाल के दिनों में पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी इलाक़ॉं में हिंसा में बढ़ोत्तरी हुई है.

हमलावरों ने अंधाधुंध गोलिया चलाई और कार को रोकने पर मजबूर किया, उसके बाद राजनयिक को कार से बाहर खींचा और उनके सुरक्षाकर्मी की हत्या कर दी

पाकिस्तानी पुलिस अधिकारी

पुलिस अधिकारी ने समाचार एजेंसी एएफ़पी को बताया, ” बंदूक़धारियों ने उस समय राजनयिक के कार पर हमला कर दिया जब वो पेशावर स्थित अपने दफ़्तर जा रहे थे.”

पुलिस का कहना है, ” हमलावरों ने अंधाधुंध गोलिया चलाईं और कार को रोकने पर मजबूर कर दिया, उसके बाद राजनयिक को कार से बाहर खींचा और उनके सुरक्षाकर्मी की हत्या कर दी. ”

एक दूसरे पुलिस अधिकारी का कहना था कि बंदूकधारी ने राजनयिक को एक दूसरी गाड़ी से किसी अज्ञात जगह पर ले गए.

तलाश जारी है

अधिकारी ने शहर के मुख्य सड़कों की घेराबंदी कर दी है और राजनयिक की तलाश जारी है.

मंगलवार को एक अमरीकी सहायताकर्मी और उसके चालक को पेशावर के यूनिवर्सिटी इलाक़े में उनके दफ़्तर के बाहर हत्या कर दी गई थी. लेकिन अब तक ये पता नहीं चल सका है कि हमलावर कौन थे.

पेशावर पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम में सबसे बड़ा शहर है और इसके आसपास के इलाक़ा तालेबान और अल क़ायदा का गढ़ माना जाता है.

इस इलाक़े में हाल के दिनों में कई बम धमाके और आत्मघाती हमले हुए हैं.

मंगलवार को पेशावर में एक आत्मघाती हमलावर ने एक स्टेडियम के गेट पर ख़ुद को उड़ा दिया था. इस हमले में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और तीन अन्य घायल हुए थे.

इस्लामाबाद से बीबीसी संवाददाता का कहना है कि पाकिस्तान के सूबा सरहद में तालेबान के बढ़ते असर की वजह से पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान में सुरक्षा की स्थिति बिगड़ती जा रही है.

पेशावर में धमाका, कई हताहत
pak
पाकिस्तान के सूबा सरहद की राजधानी पेशावर में क़यूम स्टेडियम के पास भीषण धमाका हुआ है. इसमें कई लोगों के हताहत होने की ख़बर हैं.

जिस समय धमाका हुआ उस समय क़यूम स्टेडियम में अंतर प्रांतीय खेलों का समापन समारोह चल रहा था.

अनुमान के मुताबिक उस समय स्टेडियम के भीतर हज़ारों लोग मौजूद थे.

इनमें सूबा सरहद के गवर्नर ओवैश ग़नी और वहाँ के सूचना मंत्री समेत कई अन्य नेता मौजूद थे.

समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक यह एक आत्मघाती विस्फोट है और इसमें एक व्यक्ति की मौत हुई है और पाँच घायल हैं.

पुलिस अधिकारी परवेज़ ख़ान ने एएफ़पी को बताया है कि धमाका स्टेडियम के गेट पर हुआ. उन्होंने हताहतों की संख्या बढ़ने की आशंका जताई है.

धमाके में स्टेडियम के बाहर खड़े कुछ गाड़ियाँ भी क्षतिग्रस्त हो गई हैं.

अमरीका में जब से चुनाव अभियान शुरू हुआ है, पाकिस्तान बहस का एक अहम मुद्दा रहा है और पाकिस्तान में उपजी हर बड़ी समस्या मानो
यहां के उम्मीदवारों के लिए विदेश नीति की परीक्षा साबित हुई है.

बराक ओबामा और जॉन मैकेन की पाकिस्तान नीति को बारीकी से जांचें परखें तो बहुत अंतर नहीं नज़र आएगा लेकिन ऊपरी तौर पर दोनों में
ख़ासा फ़र्क दिखता है और यही आमतौर पर जनता को भी नज़र आता है.

वर्ष 2007 के जून में जब बराक ओबामा अपनी ही पार्टी की उम्मीदवारी के लिए एक बहस में भाग ले रहे थे तो उनसे पूछा गया था कि अगर
आपको पता चलता है कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के कबायली इलाकों में छिपे हुए हैं तो आप क्या करेंगे.

इसका जवाब था कि अगर सही सही ख़ुफ़िया जानकारी हो, और पाकिस्तान कार्रवाई करने के काबिल नहीं हो या कार्रवाई नहीं करना चाहता हो
तो वो अमरीकी फौज को सीधा हमला करने का हुक्म देंगे.

उस बहस के सवा साल के बाद जब बराक ओबामा जॉन मैकेन के साथ बहस में हिस्सा ले रहे थे तो फिर उनसे वही सवाल पूछा गया और जवाब वही
था जो वो पिछले पंद्रह महीनों से देते आए हैं.

अमरीकी भूमिका

इन पंद्रह महीनों मे बुश प्रशासन के आदेश पर न जाने कितनी बार कबायली इलाकों में मिसाइल हमले हुए बल्कि एक बार तो अमरीकी कमांडो
पाकिस्तान की ज़मीन पर भी उतरे.

दोनों देशों के रिश्तों में काफ़ी तल्ख़ी भी आई. लेकिन बराक ओबामा के बयान का जो असर हुआ वो इन सब हमलों से ज़्यादा था क्योंकि
उसे देखा ऐसे गया जैसे वो पाकिस्तान पर हमला करना चाहते हों.

हारुन, एक मुस्लिम व्यक्ति
 पाकिस्तानियों को कभी भी ओबामा को वोट नहीं देना चाहिए क्योंकि उसने कम से कम 20 बार कहा है कि वो पाकिस्तान पर हमला करने में
पीछे नहीं रहेंगे. हम कैसे पाकिस्तानी कहलाएंगे अगर उसके बावजूद हम उन्हें वोट देते हैं
 

वैसे देखा जाए तो उन्होंने वही कहा जो कुछ वक्त से अमरीकी नीति का हिस्सा रहा है लेकिन यहां के नेता और अधिकारी कभी खुलकर इसकी
बात नहीं करते.

और उनके विरोधी जॉन मैकेन ने जब भी मौका मिला उन्हें इस बात की नसीहत देने में बिल्कुल देर नहीं लगाई.

मैकेन का कहना था कि ये सब बातें कही नहीं जाती हैं. जो करना है, वो करना है और ये पाकिस्तानी सरकार के साथ मिलकर करने की ज़रूरत
है.

जॉन मैकेन अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के लिए इराक़ जैसी नीति की बात कर रहे हैं. उनका कहना है कि फ़ौज में बढ़ोत्तरी की जाए और
जिस तरह से इराक़ के अनबर इलाके में सुन्नियों की मदद से काबू पाया गया वैसे ही अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों
में किया जा सकता है और वो भी पाकिस्तानी फ़ौज की मदद से.

उनका कहना है कि ये आसान नहीं होगा लेकिन लोगों को साथ लिए बिना कामयाबी नहीं मिलेगी.

बराक ओबामा भी कहते हैं कि अफ़गानिस्तान में मौजूद अमरीकी फ़ौज में बढ़ोत्तरी की जाए लेकिन पाकिस्तानी फ़ौज को ब्लैंक चेक नहीं
दिया जाए जैसा मुशर्रफ़ के ज़माने में हुआ है.

जहां तक पाकिस्तानी जनता के साथ रिश्ते बेहतर करने की बात है तो वो पाकिस्तान में स्कूल, अस्पताल, सड़कें बनाने के लिए जो पंद्रह
अरब डॉलर के अनुदान का बिल सेनेट में पेश किया गया है, उसके बड़े समर्थकों में से हैं.

यहां के कई विश्लेषक मानते हैं कि पाकिस्तानी फ़ौज के नज़रिए से देखें तो शायद मैकेन अच्छे उम्मीदवार होंगे, जनता के लिए ओबामा
और बाइडेन की जोड़ी ज़्यादा बेहतर होगी.

क्या सोचते हैं मुस्लिम..?

लेकिन अमरीका में बसे पाकिस्तानी जो इन उम्मीदवारों की नीतियों को क़रीब से देख सुन रहे हैं, उनकी क्या राय है?

इसी सवाल का जवाब जानने के लिए शुक्रवार के दिन मैं पहुंचा वर्जीनिया राज्य की दारूल खुदा मस्जिद में जहां काफ़ी संख्या में पाकिस्तानी
मूल के लोग नमाज़ अदा करने आते हैं.

अमरीका में रह रहे मुस्लिम
कुछ मुसलमानों का मानना है कि ओबामा मैकेन से ज़्यादा बेहतर विकल्प हैं

नमाज़ पढ़ने आए ख़ालिद का कहना है कि ओबामा जो भी बयान दे रहे हैं वो राजनीति से प्रेरित हैं और अमरीकी जनता को खुश करने के लिए
हैं.

उनका कहना है, “मैं उम्मीद यही करता हूँ कि वो सचमुच पाकिस्तान पर बमबारी करने की नहीं सोच रहे हैं.”

लेकिन वहीं मौजूद हारून का कहना है कि यह महज राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं है क्योंकि अमरीकी राजनीति का इतिहास यही है कि नेता जो
कहते हैं, वो करते हैं.

उनका कहना है, “पाकिस्तानियों को कभी भी ओबामा को वोट नहीं देना चाहिए क्योंकि उसने कम से कम 20 बार कहा है कि वो पाकिस्तान पर
हमला करने में पीछे नहीं रहेंगे. हम कैसे पाकिस्तानी कहलाएंगे अगर उसके बावजूद हम उन्हें वोट देते हैं.”

उनका कहना है कि इतिहास यही कहता है कि रिपबलिकन्स पाकिस्तान के लिए बेहतर होते हैं, डेमोक्रैट्स तो यहूदियों की पार्टी है और
वो मुसलमानों का कभी भला नहीं चाहते.

इस बहस को दारूल खुदा मस्जिद के मोअज़्ज़िन जिनका ताल्लुक अफ़गानिस्तान से है, बड़े ग़ौर से सुन रहे थे और जब भी मेरी नज़र उनकी
तरफ़ जाती वो हवा में मुठ्ठियां लहराकर ओबामा, ओबामा कहने लगते.

ये पूछने पर कि ओबामा उन्हें क्यों अच्छे लगते हैं, उन्होंने कहा, “वो ख़ुदा का बंदा लगता है, और मुझे उसका रंग बहुत अच्छा लगता
है.”

ये तो तय है कि व्हाइट हाउस की चाभी मैकेन को मिले या ओबामा को, दरवाज़ा खुलने से भी पहले उनके सामने समस्याओं का अंबार लगा रहेगा
और पाकिस्तान का नंबर उसमें काफ़ी उपर होगा इसमें किसी को शक नहीं है.

देखने वाली बात ये होगी कि दुनिया का सबसे बूढ़ा लोकतंत्र, नए सिरे से चलना सीख रहे पाकिस्तानी लोकतंत्र का हाथ थामता है या फिर
झटक देता है.