पाकिस्तान की प्रमुख पार्टियों की शांति की अपील के बावजूद कराची में हिंसा जारी है.

सरकारी प्रवक्ता ने कहा है कि अज्ञात बंदूकधारियों के हमलों में शनिवार से अब तक कम से कम 24 लोग मारे गए हैं.

लेकिन अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि मरने वालों की संख्या 35 से ज़्यादा हो सकती है.

यह हिंसा देश की अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) और मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के बीच महीनों से चल रहे तनाव का नतीजा है.

एएनपी ज़्यादातर उत्तर-पश्चिम और अफ़ग़ानिस्तान के पश्तूनों का प्रतिनिधित्व करती है जबकि एमक्यूएम उर्दूभाषी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है.

आगज़नी

कार और मोटरसाइकिलों पर चलने वाले बंदूकधारी अंधाधुंध फ़ायरिंग करके पैदल चलने वालों और कार चालकों को निशाना बना रहे हैं.

कुछ इलाकों में आगजनी भी की जा रही है विरोधी समुदाय के घरों और व्यापार को निशाना बनाया जा रहा है.

कराची की सड़कों पर पुलिस के अलावा कोई और नज़र नहीं आ रहा है.

क़रीब डेढ़ करोड़ की जनसंख्या वाले कराची में ज़्यादातर उर्दू भाषी लोग रहते हैं जो 1947 में भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे.

कराची में सूबा सरहद प्रांत से आने वाले पश्तूनों की तादाद भी काफ़ी है.

सूबा सरहद में चल रहे सैनिक ऑपरेशन की वजह से हज़ारों की संख्या में कराची से लगे इलाकों में पश्तूनों को हाल ही में बसाया गया है.

एमक्यूएम के नेता सार्वजनिक रूप से इस समुदाय में तालेबान की घुसपैठ होने का डर फैला रहे हैं.

अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के तालेबान में भी ज़्यादातर पश्तून हैं.

एएनपी ने इसे कराची के पश्तूनों के ख़िलाफ़ साज़िश बताते हुए एमक्यूएम के बयान की आलोचना की है.

तनाव बढ़ा

पुलिस का कहना है कि पिछले दो सप्ताहों के दौरान एमक्यूएम के प्रभुत्व वाले इलाकों में उनके ही माने जाने वाले कार्यकर्ताओं ने पश्तूनों की चाय और लकड़ी आदि की दुकानें ज़बरदस्ती बंद करवा दी हैं.

उन्होंने कहा कि शहर के विभिन्न इलाकों में पश्तूनों के वाहनों पर हमले किए जा रहे हैं जिसने सांप्रदायिक तनाव को और बढ़ाया है.

पुलिस के अनुसार, यह हिंसा कराची के उत्तर में स्थित एमक्यूएम के प्रभुत्व वाले इलाक़े के पास एक पश्तून चायवाले को मार दिये जाने के बाद शनिवार से शुरू हुई.

पश्तूनों ने कराची से आने और जाने के अपने नियंत्रण वाले अधिकतर रास्ते बंद कर दिए हैं जिनमें से ज़्यादातर एएनपी के समर्थक हैं.

पाकिस्तान की तीन मुख्य पार्टियाँ- एमक्यूएम, एएनपी और राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी की पीपीपी- देश में तनाव को कम करने के लिए मिल गई हैं.

लेकिन उनकी अपील पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है.