पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) ने उन ख़बरों को ख़ारिज किया है कि वर्ष 2011 में होने वाला क्रिकेट विश्व कप दक्षिण एशियाई देशों के हाथ से निकल सकता है.

विश्व कप के आयोजन से जुड़े और पीसीबी के ‘चीफ़ ऑपरेटिंग ऑफ़िसर’ सलीम अल्ताफ़ ने समाचार एजेंसियों को बताया कि विश्व कप से संबंधित सारी तैयारियाँ पूर्ववत चल रही हैं.

उल्लेखनीय है कि मुंबई में हुए हमलों और पाकिस्तान में सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनज़र भारतीय उप महाद्वीप में होने वाले विश्व कप को लेकर चिंता जताई जा रही है.

ऑस्ट्रेलियाई मीडिया में इस तरह की ख़बर आई थी कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट कांउसिल इस बात पर विचार कर रही है कि विश्व कप का आयोजन भारतीय उप महाद्वीप से बाहर कहीं और हो.

विचार-विमर्श

इस मामले पर अगले सप्ताह केपटाउन में विश्व कप से जुडे मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की बैठक में विचार विमर्श होने की संभावना है.

वर्ष 2011 में होने वाले विश्व कप का आयोजन भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका संयुक्त रूप से करेंगे.

अल्ताफ़ ने बताया, “आईसीसी ने विश्व कप के लिए बनी संयुक्त समिति को तय सीमा के तहत कुछ जवाबदेही सौंपी थी जिस पर हम समय से काम कर रहे हैं.”

केपटाउन में मुख्य अधिकारियों की होने वाली इस बैठक में सलीम अल्ताफ़ भी हिस्सा लेंगे.

श्रीलंका की सरकार का कहना है कि सेना देश के उत्तरी इलाक़े में तमिल विद्रोहियों के प्रशासनिक मुख्यालय किलीनोची पर कब्ज़ा करने के क़रीब है. ये तमिल विद्रोही संगठन एलटीटीई के बड़े अड्डों में से एक है.

कोलंबों में सेना के प्रवक्ता ने कहा कि कई दिन के घमासान के बाद उसे संकेत मिले हैं कि एलटीटीई उस इलाक़े और शहर के पीछे हटने की तैयारी कर रहा है.

लेकिन एलटीटीई की ओर से किलीनोटी और उसके आसपास हो रही लड़ाई के बारे में कोई बयान नहीं आया है.

एलटीटीई को ख़ासा नुकसान

समाचार एजेंसियों के अनुसार श्रीलंका की सेना तमिल विद्रोहियों के मुख्य अड्डे की ओर लगातार बढ़ रही है.

सेना के प्रवक्ता का ये भी कहना है कि सैनिक उत्तर-पूर्वी तटवर्ती मुल्लईटिवू शहर में भी दाख़िल होने के क़रीब हैं. माना जाता है कि एलटीटीई के अधिकतर लड़ाके, अन्य जगह से पीछे हटने के बाद, इस इलाक़े में जमा हुए हैं.

श्रीलंका से अलग होकर तमिल राज्य की स्थापना करने के प्रयास कर रहे एलटीटीई के लिए पिछले कई महीनों की लड़ाई बहुत ही घाटे का सौदा रहा है और उसने अपने कब्ज़े वाला ख़ासा इलाक़ा सेना को खो दिया है.

श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने स्पष्ट किया है कि उन्हें एलटीटीई के आत्मसमर्पण के अलावा कोई विकल्प मंज़ूर नहीं होगा.

मालदीव

मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद का कहना है कि वह अपने देश के लोगों के रहने के लिए एक नई जगह ख़रीदना चाहते हैं.

स्थान के लिए वह जिन देशों पर विचार कर रहे हैं उनमें भारत और श्रीलंका शामिल हैं.

उनका कहना है कि समुद्र के स्तर में लगातार वृद्धि से दुनिया भर के मौसम में जो बदलाव आया है उसका मतलब यही है कि मालदीव के रहने वालों को कहीं न कहीं और जा कर बसना पड़ेगा.

सफ़ेद बालू वाले तटों और ताड़ और खजूर के पेड़ों से आच्छादित हज़ारों द्वीपों और मूंगे के वृताकार द्वीप समूहों वाला देश मालदीव स्वर्ग जैसा लगता है. लेकिन यह स्वर्ग सिकुड़ता जा रहा है. साल-दर-साल इसका आकार घटता जा रहा है.

मालदीव एक ऐसा देश है जो सबसे निचले स्तर पर बसा हूआ है. उसकी जो सबसे ऊपरी ज़मीन है वह भी समुद्र के स्तर से दो मीटर ही ऊपर है.

समुद्र का स्तर बढ़ेगा

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि समुद्र का स्तर इस सदी के अंत तक 60 सेंटीमीटर बढ़ जाएगा.

हमें हर विकल्प को परखना होगा. चाहे वो भारत हो, श्रीलंका हो या फिर दक्षिण-पूर्व एशिया का कोई देश.

राष्ट्रपति के प्रवक्ता

मालदीव में एक हज़ार से अधिक द्वीप हैं और वह हिंद महासागर से घिरा हुआ है.

राष्ट्रपति के प्रवक्ता इब्राहिम हुसैन ज़की का कहना है कि मालदीव के सामने भविष्य के लिए दीर्घकालीन योजना पर विचार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. ज़की ने बताया कि विदेशों में ज़मीन ख़रीदने के लिए नई सरकार एक कोष बनाएगी.

मोहम्मद ज़की ने कहा, “नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने जिन नीतियों पर काम करने की योजना बनाई है उसमें एक है हमारे सुरक्षित कोष, हमारे राष्ट्रीय सुरक्षित भंडार को इस स्तर तक बढ़ाना ताकि वो हमारे लिए बीमा साबित हो सके. हम उसे पास के किसी देश में ज़मीन में निवेश कर सकें. ताकि जब कभी भी मालदीव और उसकी जनता को कोई ख़तरा हुआ तो उन्हें स्थानांतरित करने का विकल्प मौजूद रहे”.

प्रमुख पर्यटन स्थल

ज़की ने राष्ट्रपति की योजना को जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ बीमा पॉलिसी बताया. मालदीव को पर्यटन के ज़रिए हर साल अरबों डॉलर मिलते हैं, इसलिए इस पॉलिसी का प्रीमियम जमा करना उसके लिए मुश्किल नहीं होगा.

मालदीव के राष्ट्रपति ज़मीन के लिए जिन देशों के बारे में सोच रहे हैं उनमें श्रीलंका और भारत प्रमुख हैं.

उनके प्रवक्ता ज़की ने इस बारे में कहा, “हमें हर विकल्प को परखना होगा. चाहे वो भारत हो, श्रीलंका हो या फिर दक्षिण-पूर्व एशिया का कोई देश. मुझे याद आता है किसी अंतरराष्ट्रीय अख़बार में छपा एक लेख कि ऑस्ट्रेलिया मालदीव के लोगों को पर्यावरणीय शरणार्थियों के रूप में जगह देने वाला है. अब हम ये कह रहे हैं कि हमारे सामने एक पूर्ण विकल्प होना चाहिए जो कि राष्ट्रीय सुरक्षित कोष को बढ़ाने से ही संभव होगा”.

राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को डर है कि यदि भविष्य के लिए अभी से ही योजनाएँ नहीं बनाई गईं तो मालदीव के तीन लाख नागरिक पर्यावरणीय शरणार्थी बनने को विवश हो सकते हैं.