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एक अमरीकी संगठन के अनुसार अमरीका का असरदार राजनीतिक और सैनिक प्रभाव रखने वाले देश के रूप में अमरीका की छवि आने वाले सालों में कमज़ोर होगी.

अमरीकी नेशनल इंटेलिजेंस काउंसिल का कहना है कि चीन, भारत और रूस से अमरीका को कड़ी चुनौती मिलेगी.

रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले समय में लोकतंत्र का पश्चिमी मॉडल उतना आकर्षक नहीं रहेगा.

यही नहीं पूरी दुनिया में मुख्य मुद्रा के रुप में स्वीकार्य अमरीकी डॉलर अपनी चमक खो बैठेगा.

हालाँकि रिपोर्ट ये भी कहती है कि ये सब अभी से तय नहीं माना जा सकता बल्कि यह इस पर निर्भर करेगा कि दुनिया भर के नेता किस तरह के क़दम उठाते हैं.

चीन का उत्थान

चीन के बारे में कहा गया है कि यह वर्ष 2025 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और बड़ी सैनिक ताक़त के रुप में उभरेगा.

भारत के बारे में कहा गया है कि यह देश अपने आपको ‘उभरते हुए चीन और अमरीका के बीच राजनैतिक-सांस्कृतिक पुल’ के रूप में स्थापित करने की कोशिश करेगा.

विश्लेषकों के मुताबिक भारत में तेज़ी से उभरते मध्य वर्ग, युवाओं की बड़ी तादाद, खेती पर निर्भरता में कमी, घरेलू बचत दर और निवेश दर में वृद्धि से आर्थिक विकास दर को और गति मिलेगी.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि दुनिया और बहुध्रुवीय हो जाएगी. मौजूदा राजनीतिक और जातीय मौजूदा विवाद एक नई शक्ल में सामने होंगे, बढ़ती जनसंख्या और बढ़ती आर्थिक विकास दर के कारण प्रकृतिक संसाधनों पर बोझ ज्यादा होगा.

यूरोपीय संघ की हालत ख़स्ता

यूरोपीय संघ की हालत और ख़राब हो सकती है, एक लड़खड़ाती हुई अर्थव्यवस्था के साथ वो न तो अपनी कूटनीति को असरदार बना पाएगा, न ही उसकी सैन्य क्षमता बरक़रार रह पाएगी.

पाकिस्तान का भविष्य पूरी तरह अनिश्चित बताया गया है, जिससे अफगानिस्तान सबसे ज्यादा प्रभावित होगा, रिपोर्ट में पाकिस्तान के सरहदी सूबे और कबाइली इलाकों में प्रशासन ढीला ही रहेगा जिससे सीमा पार तक अस्थिरता का ये दौर यूं ही जारी रहेगा.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अगर इन इलाकों में पाकिस्तान अपने प्रशासन को संभाल नहीं पाया तो पठानों की ताकत उभरने का पूरे आसार हैं.

जहाँ तक अफगानिस्तान की बात है, रिपोर्ट में कहा गया है कि वहाँ भी सांप्रदायिक और क़बायली विवाद बढेंगे और वहां पश्चिमी देशों की विकास परियोजनाओं के संसाधनों पर कब्ज़े की लड़ाई में तबदील होने के आसार हैं.

ईरान, इंडोनेशिया औऱ तुर्की को इस रिपोर्ट में भविष्य की उभरती हुई ताकतों के रूप में देखा गया है.

इस रिपोर्ट में एक बात बड़ी साफ़ कही गई है कि अमरीका के अपना प्रभुत्व खो देने का कारण आर्थिक संकट औऱ चीन का बड़ी आर्थिक ताक़त के रूप में उभरना तो रहेगा ही लेकिन अमरीका के अपने फैसले और उसकी नीतियां, उसके लिए ज्यादा ज़िम्मेदार रहेंगी.

इराक पर हमले ने एक तो अमरीका को उसकी सैन्य ताकत की सीमाएं दिखा दीं और दूसरे ये भी समझा दिया कि एक अलग समाज में वो अपने तथाकथित पश्चिमी लोकतंत्र के आदर्श को नहीं बेच सकेगा.

मुंबई में हुए चरमपंथी हमलों पर जनता के आक्रोश को भारतीय जनता पार्टी के नेता मुख्तार अब्बास नक़वी ने प्रायोजित बताया.

उन्होंने विरोध प्रदर्शन कर रही जनता की तुलना अलगाववादियों से की.

पत्रकारों से बातचीत में जब उनसे पूछा गया कि मुंबई में जनता का गुस्सा नेताओं पर फूट रहा है तो इसके जवाब में नक़वी ने कहा कि हमारी कुछ महिलाएँ लिपस्टिक और पावडर लगाकर हाथ में मोमबत्ती लिए पश्चिमी सभ्यता के साथ नेताओं को गाली दे रही हैं, ये ठीक वैसा ही है जैसा अलगाववादी करते हैं.

हमारी कुछ महिलाएँ लिपस्टिक और पावडर लगाकर हाथ में मोमबत्ती लिए पश्चिमी सभ्यता के साथ नेताओं को गाली दे रही हैं, ये ठीक वैसा ही है जैसा अलगाववादी करते हैं

मुख्तार अब्बास नक़वी, भाजपा नेता

उन्होंने कहा कि अलगाववादी भी लोकतंत्र के प्रति लोगों में अविश्वास पैदा करते हैं.

उनका कहना था कि विरोध प्रदर्शन कर रहे इन लोगों की जांच होनी चाहिए कि आखिर ये कौन लोग हैं और उनका संबंध किससे है.

पत्रकारों ने जब नक़वी से ये जानना चाहा कि क्या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख का ताजमहल होटल के दौरे पर फ़िल्मकार रामगोपाल वर्मा को साथ ले जाना सही था, तो नक़वी ने कहा इस मामले को तूल देकर जबरन मुद्दा बनाया जा रहा है और ये कोई बड़ी बात नहीं है.

नक़वी के इस बयान से भाजपा मुश्किल में आ गई है.

इसके तुरंत बाद भाजपा नेता राजीव प्रताप रूड़ी ने बयान जारी किया कि ये नक़वी के अपने विचार हैं और भाजपा का इससे कोई लेना देना नहीं है.

उनका कहना था कि चरमपंथ के ख़िलाफ़ नेताओं और सरकारों को कड़े क़दम उठाने ही होंगे. जब तक ये नहीं होगा, आम आदमी का गुस्सा शांत नहीं होगा.

I think मुख्तार अब्बास नक़वी, भाजपा नेता supportor of terrorist? Mumbai Police Please interogate, People didn’t want any cloud around leader. the latest speech tells the truth BJP and Congress is same. Common man need to take over the Government with the help of Army. We didn’t want Democracy ( लोकतंत्र ) we want save peacefull life.

भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में एक रेलगाड़ी मं बम धमाका हुआ है जिसमें तीन लोग मारे गए हैं और 30 घायल हुए हैं. पुलिस के अनुसार मृतकों की संख्या बढ़ सकती है.

ये घटना डिफ़ू स्टेशन पर तब हुई जब उत्तरी असम के लुमडिंग स्टेशन से रेलगाड़ी दक्षिणी असम के तिनसुखिया जा रही थी. ये पहाड़ी कार्बी एंगलोंग ज़िले में स्थित है.

असम के पुलिस प्रमुख जीएम श्रीवास्तव ने बीबीसी को बताया कि कई घायल हुए लोगों की हालत गंभीर है.

उत्तरी और दक्षिणी असम में रेल सेवाएँ इस घटना की वजह से प्रभावित हुई हैं और अधिकारियों के अनुसार दोबारा शुरु करने में एक दिन लग सकता है.

किसी ने ज़िम्मेदारी नहीं ली

असम में सक्रिय विद्रोही संगठनों में से किसी ने भी इस घटना की ज़िम्मेदारी नहीं ली है.

पुलिस का कहना है कि उसे कार्बी जनजाति के कोर्बी लोंगरी नेशनल लिब्रेशन फ़्रंट का इस घटना में हाथ होने का शक़ है. ये गुट पहले भी हिंदी भाषी लोगों को वहाँ निशाना बना चुका है.

तीस अक्तूबर को असम के चार नगरों में हुए धमाकों में 80 लोग मारे गए थे. उन धमाकों के लिए राज्य सरकरा ने अल्फ़ा और नेशनल डेमोक्रिटेक फ़्रंट ऑफ़ बोडोलैंड को ज़िम्मेदार ठहराया था.

हम उनको मुसलमान नहीं मानते. उन्होंने जो किया, कोई मुसलमान नहीं कर सकता. और जब वो मुसलमान हैं ही नहीं तो उन्हें मुसलमानों के कब्रिस्तान में क्योंकर जगह मिले…..

यह कहना है मुंबई में मुसलमानों के एक प्रतिष्ठित संगठन, मुस्लिम काउंसिल ट्रस्ट का.

मुंबई के पिछले सप्ताह हुए चरमपंथी हमले में जहाँ 190 लोगों ने अपनी जान गवाँई थीं वहीं नौ चरमपंथी भी मुठभेड़ में मारे गए थे.

मारे गए लोगों के शवों को तो परिजनों को सौंपा जा चुका है या सौंपा जा रहा है पर चरमपंथियों की लाशों का कोई नामलेवा तक नहीं है.

सोमवार की इन चरमपंथियों के शवों के पोस्टमार्टम का काम भी पूरा कर लिया गया.

अब बारी है उस काम की जो किसी को भी मरने के बाद मिलता है. मिट्टी हो चुके इन शरीरों को मिट्टी की आस है,

पर जिन शवों की पैदाइश की मिट्टी को लेकर ही अभी तक जाँच एजेंसियाँ कुछ खुलकर नहीं बोल रही हैं, उन्हें मरने के बाद अब एक मुट्ठी मिट्टी तक नसीब होती नज़र नहीं आ रही.

वे मुसलमान नहीं..

वजह है कि हमलों के बाद हुई मुठभेड़ में मारे गए नौ चरमपंथियों को मुंबई के मुसलमानों ने कब्रिस्तान में दफ़न करने से मना कर दिया है.

वो मुसलमान हो ही नहीं सकते, जो इस्लाम के क़ायदे-क़ानूनों को नहीं मानता वह मुसलमान कैसे हो सकता है लिहाज़ा हम ये चाहते हैं कि इन्हें मुसलमानों के किसी भी कब्रगाह में दफ़न न किया जाए

इब्राहीम ताय

मुंबई में मुसलमानों के संगठन मुस्लिम काउंसिल ट्रस्ट ने कहा कि इन लोगों को भारत की ज़मीन पर या मुसलमानों के कब्रिस्तान में दफ़न नहीं किया जाना चाहिए.

भारत के मुसलमानों ने इन हमलों के प्रति अपनी नाराज़गी ज़ोरदार तरीक़े से प्रकट की है,

इससे पहले भारत के मुसलमानों ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ फ़तवे तो जारी किए हैं पर यह पहला मौक़ा है जब उन्होंने चरमपंथियों को दफ़न करने से इनकार किया है.

और तो और, काउंसिल ने इस बारे में मुंबई के मुस्लिम कब्रिस्तानों की प्रबंधक कमेटियों से भी अपनी बात रखी है और कमेटियों ने उनकी बात से सहमति जताई है.

मुस्लिम काउंसिल ट्रस्ट के प्रमुख इब्राहीम ताय कहते हैं कि इस तरह के हमले करने वाले मुसलमान नहीं हो सकते इसलिए उन्हें मुसलमानों के कब्रिस्तान में जगह नहीं दी जानी चाहिए.

इब्राहीम ताय ने कहा, “वो मुसलमान हो ही नहीं सकते, जो इस्लाम के क़ायदे-क़ानूनों को नहीं मानता वह मुसलमान कैसे हो सकता है लिहाज़ा हम ये चाहते हैं कि इन्हें मुसलमानों के किसी भी कब्रगाह में दफ़न न किया जाए.”

मुंबई के चरमपंथी हमले में नौ हमलावर मारे गए थे और उनका एक साथी अजमल अमीर क़साब गिरफ़्तार किया गया था, उसने पुलिस को बताया कि मारे गए सभी लोग मुसलमान थे.

मुस्लिम काउंसिल के महासचिव सरफ़राज़ आरज़ू ने बताया कि इस फ़ैसले की सूचना अधिकारियों को भी दे दी गई है.

उन्होंने बताया, “इस्लाम के मुताबिक वो सब किसी भी तरह सही नहीं हो सकता जो इन्होंने इस्लाम के नाम पर किया है. कमज़ोरों, बेगुनाहों, महिलाओं, बच्चों को निशाना बनाना इस्लाम में जुर्म है. यहाँ तक कि खड़ी फ़सल को नष्ट कर देना भी हराम बताया गया है. ऐसे में इस घृणित हरकत करनेवालों के लिए मुसलमानों के कब्रिस्तान में कोई जगह नहीं.”

उन्होंने बताया कि इस बारे में गृह विभाग और पुलिस को अपनी राय से अवगत भी करा दिया गया है. अगर इसकी अवहेलना होती है तो प्रशासन को ऐसा करने से पहले तीखे विरोध-प्रदर्शनों का सामना करना पड़ेगा.

हालांकि इस नए फ़ैसले से भी इन चरमपंथियों के दफ़्न होने की संभावना ख़त्म नहीं होती. सरकारी स्तर पर म्युनिसिपल कार्पोरेशन लावारिस शवों को दफ़नाने का काम करती रही है. कुछ लोग भी लावारिसों के लिए दफ़न का सामान, जगह, बंदोबस्त मुहैया कराने का काम करते रहे हैं.

मुसलमानों के कब्रिस्तानों में भी लावारिस लाशों को दफ़नाने की गुंजाइश है. चरमपंथियों के शव इस बिना पर भी मुसलमनों के कब्रिस्तानों में दफ़नाए जा सकते हैं.

बहरहाल, चोट खाए दिलों में अब इन चरमपंथियों के शवों तक के लिए कोई जगह नहीं है पर क्या इन्हें इस्लाम के ख़िलाफ़ बताने भर से क्या समाज मानवता के ख़िलाफ़ हो सकता है, यह एक कड़वी बहस है.

जब यही सवाल हमने काउंसिल महासचिव से पूछा तो उन्होंने स्वीकार किया कि इनकी दरिंदगी देखकर खुद अमानवीय नहीं हुआ जा सकता. पर सवाल इतना छोटा नहीं है और जवाब ऐसा ही मिलेगा.

मुंबई हमलों को अंजाम देने के लिए शक़ की सुई लश्कर-ए-तैबा पर घूमती है. स्थानीय संगठन अपने बलबूते पर इतना बड़ा हमला नहीं कर सकते.

हमले के संबंध में डेकन मुजाहिदीन का नाम सामने ज़रूर आया है, लेकिन नाम पर न जाएं तो बेहतर है. ये लोग अपने संगठन का नाम बदलते रहते हैं.

लेकिन इन सभी की जड़ें पाकिस्तान में है. इनका संबंध अल क़ायदा से है.

मेरा अनुभव है कि हमारी जाँच एजेंसियाँ इनसे निपटने में सक्षम हैं. लेकिन उन्हें काम करने नहीं दिया जाता. उनसे कहा जाता है कि ऐसा कोई काम नहीं करें जिससे वोट बैंक फिसल जाए.

उच्चतम न्यायालय ने भी निर्देश दिए हैं, लेकिन आज तक केंद्र और राज्य सरकारों ने उनका पालन नहीं किया.

ख़ुफ़िया पुलिस है ज़रूर, लेकिन उसका दुरूपयोग किया जा रहा है. हालात में फ़िलहाल सुधार नज़र नहीं आता.

दिल्ली में हाल की मुठभेड़ को नेताओं ने फर्ज़ी बता दिया. यहाँ ख़ुफ़िया तंत्र की प्रशंसा होनी चाहिए थी, लेकिन उसकी निंदा की गई. ऐसा होना शर्मनाक है.

दिक्कत यह है कि आप सोते को जगा सकते हैं, लेकिन यदि कोई जागते हुए भी सोता रहे तो कोई क्या कर सकता है.

वेद मारवाह
एनएसजी के पूर्व महानिदेशक

चरमपंथियों से लोहा लेते हुए जान गँवाने वाले नेशनल सेक्युरिटी गार्ड यानी एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पिता ने साँत्वना देने आए केरल के मुख्यमंत्री को आड़े हाथों लिया.

युवा मेजर संदीप मुंबई के ताज होटल को चरमपंथियों से मुक्त कराने की कार्रवाई में मारे गए थे.

उनके निधन के दिन केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन ने कोई शोक संदेश नहीं दिया था. लेकिन रविवार को वो राज्य के गृहमंत्री के साथ मेजर संदीप के पिता के उन्नीकृष्णन को सांत्वना देने बंगलौर स्थित उनके आवास पर पहुँचे.

अपने घर पर नेताओं को देख कर के उन्नीकृष्णन गुस्से से भड़क उठे. जैसे ही उन्हें पता चला कि केरल के मुख्यमंत्री और गृहमंत्री उनके घर पर हैं, उन्होंने उन्हें चिल्लाते हुए घर से निकल जाने को कहा.

इससे पहले मेजर संदीप के पिता ने स्पष्ट कर दिया था कि वो नेताओं से नहीं मिलेंगे. आधे घंटे तक मुख्यमंत्री अच्युतानंद और उनके गृहमंत्री अपने सुरक्षा कर्मियों और साथ आए अन्य लोगों के साथ बाहर इंतजार करते रहे.

संदीप, अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे और उनकी मां इस समय गहरे सदमे में हैं. अपने बेटे के अंतिम संस्कार के समय वे दुख से मूर्छित हो गई थीं.

बैरंग लौटाए जाने के बाद मुख्यमंत्री अच्युतानंदन ने पत्रकारों से सिर्फ़ इतना कहा कि वो शोकाकुल परिवार को ढाढस देने आए थे. वहीं केरल के गृह मंत्री का कहना था, “उन्होंने अपना बेटा खोया है और वो इस सदमे से उबर नहीं पाए हैं.”

एनएसजी के महानिदेशक जेके दत्त ने कहा था, “शुक्रवार को जब ताज में कार्रवाई चल रही थी तब संदीप ने अपने सहयोगियों को बचाने के लिए अकेले मोर्चा संभाला और मारे गए.”

courtacy: BBC

जय माता की !

सनातन हिंदू धर्मं में कही भी इस बात की चर्चा नही की गई है किसी देवी-देवता को किसी पशु-पक्षी या अन्य जीव की बली देनी चाहिए या बली देने से मनोकामना पूर्ण होती है ! फिर भी माँ दुर्गा या उनके अन्य रूपों को पशु-पक्षी की बली दी जा रही, वो माँ दुर्गा जिनको जगत-जननी कहा जाता है, मनुष्य, पशु-पक्षी आदी सभी जीव जिनके संतान है, जो ब्रह्मांड के सभी जीवो की परमममतामई माँ है उनके ही सामने उनके संतान की अंधविश्वासियों और धर्मान्धियों द्वारा गला रेत कर निर्दयता पूर्वक हत्या की जाती, क्या अपने संतान की ये हालत देखकर माता को दुःख नही होता होगा ? क्या उनका कलेगा नही फटता होगा ? दुनिया की कोई भी माँ अपने संतान के आँख से आंशु का एक बूंद भी नही देख सकती फिर अपने ही संतान की अपने आँखों के सामने हत्या होते देख कर वो जगत जननी माँ कितना दुखी होती होगी ?

अतः आपसब से प्रार्थना है की इस कुप्रथा को समाप्त कराने में सहयोग करे !

ये बली देने का काम देश के अन्य मंदिरों के साथ-साथ थावेवाली माता के मन्दिर में भी होती है | आईये इस सुभ कार्य की शुरुआत माता थावेवाली के मन्दिर से करते है लोगो को समझाते-बुझाते है की बली देना बंद करे और माता से क्षमा मांगे , करुनामई माँ उन्हें अवश्य क्षमा कर देंगी, आखीर कही–न-कही से शुरुवात करनी ही होगी तभी देश के बाकी हिस्सों में भी इसका अच्छा असर होगा |

मित्रों आइये संकल्प ले की माता थावेवाली के मन्दिर में होनेवाले बली को अब और नही होने देंगे, बली देने वाले नासमझ लोगो को समझा-बुझाकर उन्हें सही रस्ते पर लायेंगे और जगत जननी माँ जगदम्बा के हिर्दय को अब और कष्ट नही पहुँचने देंगे |

इस कुप्रथा को पूर्ण रूप से और यथाशीघ्र कैसे समाप्त किया जा सकता है आप अपना सुझाव अवस्य दिजिये |
यदि आप बली प्रथा का समर्थन करते है तो इसके पक्ष में सम्बंधित धर्मं-ग्रन्थ का प्रमाण दिजिये |

आईये हम सब मिलकर बली देने वाले अपने मित्रो, परिजनों को जागरूक बनाये और ये घोर पाप और जघन्य अपराध करने से उन्हें रोके !

जय माता की !

आपका अपना
अजित तिवारी

http://www.jaimaathawewali.com

पिछले 15 वर्षों में देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में चार बार बड़े आतंकवादी हमले हुए हैं।

26 नवंबर 2008 : 80 लोग मारे गए और कई घायल हुए। शहर के सात जगहों को आतंकवादियों ने निशाना बनाया।

11 जुलाई 2006 : उपनगरीय रेल सेवा में हुए विस्फोटों में 200 लोगों की मौत।

25 अगस्त 2003 : दो विस्फोटों में 46 लोगों की मौत। एक विस्फोट गेट वे ऑफ इंडिया के पास हुआ था।

12 मार्च 1993 : शहर में बंबई स्टॉक एक्सचेंज, होटलों, सिनेमाघरों, पासपोर्ट कार्यालय और एयर इंडिया बिल्डिंग व सहार एयरपोर्ट पर हुए सिलसिलेवार हमले में 257 लोगों की मौत हो गई, जबकि 700 लोग घायल हुए।

यह कहानी एक ऐसे बलात्कारी की है, जिसने जमानत पर छूटने के बाद अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘अंधा कानून’ देखी और उससे सीखा खुद को मुर्दा साबित करने का तरीका। उसने खुद को मुर्दा साबित कर भी दिया और उसका मुकदमा बंद हो गया।

प्रेम कुमार बलात्कार के इल्जाम में जेल में था। दो साल सलाखों के पीछे गुजर गए, तब जमानत मिली। प्रेम जेल से बचने के तरीके ढूंढने लगा। तभी उसने फिल्म ‘अंधा कानून’ देखी।

फिल्म में अमरीश पुरी किसी का कत्ल कर उसकी सूरत बिगाड़ देता है। उसे अपने कपड़े पहनाकर अफवाह उड़ा देता है कि अमरीश पुरी मर गया। अमरीश पुरी का आइडिया प्रेम को भा गया। उसे लगा कि अगर वह भी ऐसा कर दे तो जेल से बच जाएगा।

प्रेम ने भी अपना एक हमशक्ल खोजा। अपने साथी की मदद ली। सबने दारू पी, फिर उसने हमशक्ल को पीट-पीटकर मार डाला। उसे अपने कपड़े पहनाए, अपना ड्राइविंग लाइसेंसे उसकी जेब में डाल दिया। उसके बाद उसकी लाश को रेलवे पटरी पर ऐसे डाल दी कि ट्रेन आई तो उसका सिर धड़ से अलग हो गया। सिर उसने नहर में फेंक दिया।

पुलिस को पटरी से सिरकटी लाश मिली और जेब से प्रेम का ड्राइविंग लाइसेंस। प्रेम को मरा जानकर उसका मुकदमा बंद हो गया। केस बंद हो गया तो प्रेम गांव में मेला देखने पहुंच गया और वहां किसी ने उसे पहचान लिया। फिर पुलिस को खबर मिली और प्रेम फिर से जेल पहुंच गया।

एक फिल्म से जुर्म करने का आइडिया लेते वक्त प्रेम कुमार ने शायद यह नहीं सोचा कि हिन्दुस्तान की दूसरी हजारों फिल्मों में विलेन का क्या अंजाम होता है। अगर यह सोचा होता तो शायद वह ऐसा कदम नहीं उठाता।

orissa
24 साल की स्मृति रेखा को अपनी एक बांह गंवानी पड़ी और उनके शरीर पर गहरी चोटें गाई हैं। घटना उड़ीसा के बालेश्वर की है।

ट्रेन में एक आदमी शराब पीकर स्मृति से जबरदस्ती की कोशिश कर रहा था, खुद को बचाने के लिए स्मृति को चलती ट्रेन से कूदना पड़ा। ट्रेन से गिरते ही स्मृति बिजली के एक खंभे से टकराकर बेहोश हो गई।

स्थानीय लोग उसे लेकर फौरन पास के एक अस्पताल पहुंचे। उसके पिता का आरोप है कि वहां की रेलवे पुलिस बयान दर्ज करने पर भी तैयार नहीं थी। कड़वे दौर से चुके घरवाले अब इंसाफ और मुआवजे की मांग कर रहे हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि न तो जीआरपी और न ही रेलवे की तरफ से इस बारे में कोई खोजबीन की गई।

Smritirekha Pati is still in trauma. She jumped off a moving train to escape some drunkards who found her alone in the compartment and attacked her.

Smritirekha, a researcher at Dhanbad’s mining institute, lost her left arm and sustained multiple fractures.

“All my co-passengers got down at Bankura station. The compartment got empty and I was at the door hoping some passengers will board the train, but it was a drunken man who entered and started taking liberties with me. I had no option but to jump out when he made advances at me.”

Smritirekha’s father B S Pati says the Railway Police did not even record his daughter’s statement. “Now her future has become dark. The disaster in her life must be compensated by the Railways. And the miscreant must be traced and be severely punished at any cost.”

The South Eastern Railways are yet to order an inquiry into the incident.

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